काठमाडौँ / कालीमाटी फलफूल तथा तरकारी बजार विकास समितिले आज बिहीबारको तरकारी, फलफूल तथा माछाको मूल्य विवरण प्रकाशित गरेको छ ।
जसअनुसार आज कलकत्ते आँपको औसत मूल्य प्रतिकेजी ८५ रुपैयाँ, मालदह आँपको ९५ रुपैयाँ रहेको छ भने फूँजी स्याउ २६५ रुपैयाँ रहेको छ ।
तरकारीतर्फ रातो आलु ४२.५० रुपैयाँ, मुडेको आलु ४२.५० रुपैयाँ र सेतो आलु ३१ रुपैयाँ तोकिएको छ । त्यस्तै, स्थानीय काउली ६५ रुपैयाँ, लोकल काक्रो ५५ रुपैयाँ, हाइब्रीड काक्रो १७.५० रुपैयाँ, तिते करेला ४५ रुपैयाँ रहेको छ ।
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वस्तु | एकाइ | न्यूनतम | अधिकतम | औसत |
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अदुवा | के.जी. | रू. ७० | रू. ८० | ७५.०० |
अनार | के.जी. | रू. २८० | रू. ३०० | २९०.०० |
आँप(कलकत्ते) | केजी | रू. ८० | रू. ९० | ८५.०० |
आँप(चोसा) | केजी | रू. ८० | रू. ९० | ८५.०० |
आँप(दसहरी) | केजी | रू. ८० | रू. ९० | ८५.०० |
आँप(मालदह) | के.जी. | रू. ९० | रू. १०० | ९५.०० |
आलु रातो | के.जी. | रू. ४० | रू. ४५ | ४२.५० |
आलु रातो(भारतीय) | के जी | रू. २८ | रू. ३० | २९.०० |
आलु रातो(मुडे) | केजी | रू. ४० | रू. ४५ | ४२.५० |
आलु सेतो | के.जी. | रू. ३० | रू. ३२ | ३१.०० |
इमली | के.जी. | रू. १४० | रू. १५० | १४५.०० |
काउली स्थानिय | के.जी. | रू. ६० | रू. ७० | ६५.०० |
काक्रो(लोकल) | के.जी. | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
काक्रो(हाइब्रीड) | के जी | रू. १५ | रू. २० | १७.५० |
कागती | के.जी. | रू. १०० | रू. १२० | ११०.०० |
कुरीलो | के.जी. | रू. ४०० | रू. ५०० | ४५०.०० |
केरा | दर्जन | रू. १०० | रू. ११० | १०५.०० |
खुर्सानी हरियो(अकबरे) | के जी | रू. १०० | रू. १२० | ११०.०० |
खुर्सानी हरियो(बुलेट) | के जी | रू. ९० | रू. १०० | ९५.०० |
खुर्सानी हरियो(माछे) | के जी | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
खु्र्सानी सुकेको | के.जी. | रू. ३०० | रू. ३२० | ३१०.०० |
खु्र्सानी हरियो | के.जी. | रू. ७० | रू. ८० | ७५.०० |
गाजर(लोकल) | के.जी. | रू. ९० | रू. १०० | ९५.०० |
गान्टे मूला | के.जी. | रू. ७० | रू. ८० | ७५.०० |
गोलभेडा सानो(टनेल) | के जी | रू. ३५ | रू. ४५ | ४०.०० |
गोलभेडा सानो(लोकल) | के.जी. | रू. १० | रू. १५ | १२.५० |
घिउ सिमी(राजमा) | केजी | रू. ९० | रू. १०० | ९५.०० |
घिउ सिमी(लोकल) | के.जी. | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
घिउ सिमी(हाइब्रीड) | केजी | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
घिरौला | के.जी. | रू. ३० | रू. ४० | ३५.०० |
चमसूरको साग | के.जी. | रू. ९० | रू. १०० | ९५.०० |
चिचिण्डो | के.जी. | रू. २० | रू. ३० | २५.०० |
चुकुन्दर | के.जी. | रू. ७० | रू. ८० | ७५.०० |
च्याउ(कन्य) | के.जी. | रू. १५० | रू. १८० | १६५.०० |
च्याउ(डल्ले) | के जी | रू. २८० | रू. ३०० | २९०.०० |
छ्यापी सुकेको | के.जी. | रू. १०० | रू. १२० | ११०.०० |
जिरीको साग | के.जी. | रू. ४० | रू. ५० | ४५.०० |
झिगूनी | के.जी. | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
ठूलो गोलभेडा(भारतीय) | केजी | रू. ३० | रू. ४० | ३५.०० |
तरबुजा(हरियो) | के.जी. | रू. ३० | रू. ३५ | ३२.५० |
ताजा माछा(छडी) | के जी | रू. २०० | रू. २२० | २१०.०० |
ताजा माछा(बचुवा) | के जी | रू. २२५ | रू. २३५ | २३०.०० |
ताजा माछा(मुंगरी) | के जी | रू. २६० | रू. २७० | २६५.०० |
ताजा माछा(रहु) | के जी | रू. २७० | रू. २८० | २७५.०० |
तामा | के.जी. | रू. ९० | रू. १०० | ९५.०० |
तितो करेला | के.जी. | रू. ४० | रू. ५० | ४५.०० |
तोफु | के.जी. | रू. ९० | रू. १०० | ९५.०० |
तोरीको साग | के.जी. | रू. २० | रू. ३० | २५.०० |
न्यूरो | के.जी. | रू. ७० | रू. ८० | ७५.०० |
परवर(तराई) | केजी | रू. ४० | रू. ५० | ४५.०० |
परवर(लोकल) | के.जी. | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
पालूगो साग | के.जी. | रू. ९० | रू. १०० | ९५.०० |
पुदीना | के.जी. | रू. १०० | रू. १२० | ११०.०० |
प्याज सुकेको (भारतीय) | के.जी. | रू. ४६ | रू. ४८ | ४७.०० |
प्याज हरियो | के.जी. | रू. ७० | रू. ८० | ७५.०० |
फर्सी पाकेको | के.जी. | रू. ३० | रू. ३५ | ३२.५० |
बन्दा(लोकल) | के.जी. | रू. ३० | रू. ३५ | ३२.५० |
बोडी(तने) | के.जी. | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
ब्रोकाउली | के.जी. | रू. १५० | रू. १६० | १५५.०० |
भटमासकोशा | के.जी. | रू. १२० | रू. १३० | १२५.०० |
भन्टा डल्लो | के.जी. | रू. ३० | रू. ३५ | ३२.५० |
भन्टा लाम्चो | के.जी. | रू. २० | रू. ३० | २५.०० |
भिण्डी | के.जी. | रू. ३० | रू. ४० | ३५.०० |
भुई कटहर | प्रति गोटा | रू. १४० | रू. १५० | १४५.०० |
भेडे खु्र्सानी | के.जी. | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
मूला सेतो(लोकल) | के.जी. | रू. २० | रू. २५ | २२.५० |
मेवा(भारतीय) | केजी | रू. १०० | रू. १२० | ११०.०० |
मौसम | के.जी. | रू. २०० | रू. २२० | २१०.०० |
रातो बन्दा | के.जी. | रू. ६० | रू. ७० | ६५.०० |
रायो साग | के.जी. | रू. ३० | रू. ४० | ३५.०० |
रुख कटहर | के.जी. | रू. ४० | रू. ५० | ४५.०० |
लसुन सुकेको चाइनिज | के.जी. | रू. १८० | रू. १९० | १८५.०० |
लसुन सुकेको नेपाली | के.जी. | रू. १०० | रू. १२० | ११०.०० |
लसुन हरियो | के.जी. | रू. ६० | रू. ७० | ६५.०० |
लीच्ची(लोकल) | के.जी. | रू. १२० | रू. १५० | १३५.०० |
लौका | के.जी. | रू. ५० | रू. ६० | ५५.०० |
सखरखण्ड | के.जी. | रू. ६० | रू. ७० | ६५.०० |
सेतो मूला(हाइब्रीड) | केजी | रू. २० | रू. ३० | २५.०० |
स्कूस | के.जी. | रू. ४० | रू. ५० | ४५.०० |
स्याउ(फूजी) | के जी | रू. २५० | रू. २८० | २६५.०० |
हरियो धनिया | के.जी. | रू. १०० | रू. १२० | ११०.०० |
हरियो फर्सी(डल्लो) | केजी | रू. ३० | रू. ४० | ३५.०० |
कृषि समाचारः कोरोना र विपद्को जोखिमका बीच धान रोपाइँको चटारो
कोरोना भाइरस सङ्क्रमणको जोखिम झेलिरहेका नागरिकलाई केही दिनदेखिको मनसुनी वर्षासँगै भइरहेका प्राकृतिक विपद्का घटनाले थप समस्या खेप्नु परेको छ ।
मनसुनी वर्षा सक्रिय भएसँगै देशका विभिन्न क्षेत्रमा बाढी, पहिरो र डुबानको समस्याले धनजनको क्षति पुगेको छ।
प्राकृतिक विपद् र कोरोना सङ्क्रमणको जोखिमका बीच कैलाली, कञ्चनपुरलगायतका जिल्लामा भने यतिबेला बर्खे धान बालीको रोपाइँ गर्ने चटारो छ । रोपाइँ गर्न पुग्ने गरी वर्षा भएपछि किसालाई रोपाइँ गर्ने चटारो भएको हो ।
कैलाली र कञ्चनपुरमा अहिलेसम्म वर्षाका कारण कुनै त्यस्तो प्राकृतिक विपद् नदेखिए पनि नदीतटीय क्षेत्रका वासिन्दा कतिबेला आफूहरु बाढी र डुबानको चपेटामा परिने हो भनेर त्रासमा देखिन्छन् ।
स्थानीय किसान रामदिन चौधरीले भने, ‘‘कोरोनाको जोखिम यथावत छ, नदीमा पानीको सतह बढ्दा हुन सक्ने डुबानको समस्याबाट तटीय क्षेत्रका किसान त्रासमा देखिन्छन् ।’’
आम्दानी गर्ने र जीविका चलाउने मुख्य स्रोतको रुपमा बर्खे धान खेती रहेकाले रोग सङ्क्रमण र विपद्को जोखिमका बीच पनि धान रोपाइँ गर्नै पर्ने वाध्यता रहेको अर्का किसान नवराज पाण्डेय बताउँछन् ।
‘‘धेरै जिल्लामा बाढी, डुबान, पहिरो आएको खबर सुनिन्छ, कोरोनाको त्रास पनि रोकिएको छैन,तर अहिले खेती नगरे जीविका चलाउनै मुश्किल हुने भएकाले खेतीको काम गर्नै पर्ने अवस्था छ’’, धनगढी उपमहानगरपालिका—१३ का कृषक पाण्डेयले भने,
कृषकले आफूलाई आवश्यक पर्ने धान घरमा भण्डारण गरी बढी भएको धान बिक्री गरेर घर खर्चको जोहो गर्ने गरेका छन् ।
धान रोपाइँ गर्ने, काट्ने र झार्ने काममा आधुनिक कृषि औजारको प्रयोग पनि पछिल्ला वर्षमा बढ्दै गएको छ । यी औजारको प्रयोगसँगै समयको बचत हुनुका साथै परिश्रम समेत कम लाग्ने हुँदा रोपाइँ गर्न सहज भइरहेको किसान रामदिन बताउँछन् ।
‘‘खेती गर्न र कृषि उपज ढुवानी गर्दा पहिलेको जस्तो राँगा र गोरु गाडाको प्रयोग घटेर आधुनिक मेसिनको प्रयोग बढ्दा निकै सहज भएको छ,’’ चौधरीले भने, ‘‘समयमै मलखाद, बीऊबिजन, सिँचाइजस्ता समस्या भने यथावत रहेको छ ।’’
वर्षाको पानीले रोपाइँ गरौँला भन्ने आशमा बस्नु पर्ने अवस्थामा रहेका तराईका कृषकहरु पाँच दिनयता भइरहेको मनसुननी वर्षापछि हौसिएका छन् । तराईका अधिकांश कृषक सिँचाइको भरपर्दो सुविधा नहुँदा आकासे पानीको भरमा रोपाइँ गर्दै आएका छन् ।
प्रदेशका पहाडी क्षेत्रका जिल्लामा भने गएको जेठ महिनादेखि नै रोपाइँ शुरु भएको थियो । पहाडी जिल्लाका गाउँवस्तीमा छरछिमेकीले आपसमा मिलेर पालैपालो रोपाइँ गर्नु पर्ने पर्मको प्रचलन छ । पर्मको प्रचलनले रोपाइँ गर्दा सम्बन्धित कृषकलाई नगद खर्च गर्नु पर्ने बाध्यता त्यति नहुने बताइन्छ ।
तराईका जिल्लामा यस्तो प्रचलन भने त्यति ठूलो रुपमा देखिंदैन । अधिकांशले मजदूर लगाएर रोपाइँ गर्नु पर्ने अवस्था छ । पहाडी क्षेत्रमा रोपाइँ हुने दिनलाई उत्सवका रुपमा लिने गरिन्छ । रोपाइँ गर्ने गोरुको लागि भने जौ पिँधेर बनाइएको पिठोको ‘बाडी’र ‘ढुल्ला’ बनाएर खुवाउने चलन छ ।
कृषि विकास निर्देशनालय दिपायलको तथ्याङ्कका अनुसार आजसम्म प्रदेशमा बर्खे धान खेती गरिने जम्मा एक लाख ८५ हजार ८४७ हेक्टरमध्ये झण्डै २२ प्रतिशत आर्थात् ४१ हजार ७९७ हेक्टरमा रोपाइँ पूरा भएको छ । निर्देशनालयका निर्देशक यज्ञराज जोशीले धेरै क्षेत्रफलको जग्गामा अझै रोपाइँ गर्न बाँकी रहेको बताए ।
प्रदेशमा सबैभन्दा बढी क्षेत्रफलमा धान उत्पादन हुने जिल्लाको रुपमा रहेको कैलालीमा आजसम्म २० प्रतिशत जग्गामा रोपाइँ पूरा भएको छ । यो जिल्लामा ७० हजार ५२० हेक्टर जग्गामा बर्खे धान खेती हुने गरेको छ ।
यसैगरी धान खेती गरिने कञ्चनपुरको ४८ हजार ४७५ हेक्टरमध्ये २५ प्रतिशत, अछाममा ३०, बाजुरामा ३५, बझाङमा २० प्रतिशत जग्गामा रोपाइँ पूरा भएको छ । बैतडीमा २५ प्रतिशत, दार्चुला र डडेलधुरामा १५÷१५ प्रतिशत र डोटीमा २० प्रतिशत जग्गामा रोपाइँ सकिएको छ ।
डोटीमा १० हजार ७१५, डडेलधुरामा छ हजार १८८, अछाममा १६ हजार ५९०, बाजुरामा सात हजार १७५, दार्चुलामा चार हजार ४८० बैतडीमा नौ हजार र बझाङमा १२ हजार ७०४ हेक्टरमा बर्खे धान खेती हुने गरेको छ ।
धान उत्पादन बढी हुने कैलाली र कञ्चनपुरबाट पहाडी जिल्लामा आपूर्ति हुने गरेको छ । यो प्रदेशमा धान खेती गरिने जग्गामध्ये ५१ प्रतिशत खेतमा सिँचाइ सुविधा पुगे पनि बाँकी जग्गामा अझै आकासे पानीमा निर्भर रहनु पर्ने बाध्यता छ ।